जब फागुन रंग झमकते हों
तब देख बहारें होली की
परियों के रंग दमकते हों
ख़ुम शीशे जाम छलकते हों
महबूब नशे में छकते हों
जब फागुन रंग झमकते हों
नाच रंगीली परियों का
कुछ भीगी तानें होली की
कुछ तबले खड़कें रंग भरे
कुछ घुँघरू ताल छनकते हों
जब फागुन रंग झमकते हों
मुँह लाल गुलाबी आँखें हों
और हाथों में पिचकारी हो
उस रंग भरी पिचकारी को
अँगिया पर तक के मारी हो
सीनों से रंग ढलकते हों
तब देख बहारें होली की
जब फागुन रंग झमकते हों
तब देख बहारें होली की
–नज़ीर अकबराबादी
वाह क्या बात है ! सुन्दर रचना पढ़ाने के लिए शुक्रिया ।
HOLI KI SHUBHKAAMNAYE AAPKO BHI…NAZIR JI SUNDAR RACHNA READ KARWAAKE YEH EHSAAS DILA DIYE KI KAASH AB BHI HOLI AISEE HI BHAVNA SE KHELI JAATI….THANKS SANJEET
AAP SABHI KO HOLI KI HARDIK SHUBHKAMNAYEN!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!